ज़िन्दगी जीने की चाहत
September 2, 2014 at 8:56 pm,
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ज़िन्दगी जीने की चाहत में एक उम्र गुजार दी
खुद की साँसे तो काफी न थी औरों को उधार दी
करता रहा सबको खुश देखने की कोशिश
खुद के दामन में उलझने हज़ार थी
ज़िंदा हूँ अबतक तो यह मेरा हौसला है
अब तो दुश्मनो ने भी मेरी नज़र उतार दी
एक बारूद हूँ जिसे चिंगारी की जरुरत नहीं
कब फट जाऊं मैं इसका कोई एतबार नहीं
तुम जिस हद तक चाहो गुजर जाओ
हमने तेरे सजदे में यह उम्र गुजार दी
अब कौन करे नफे नुक्सान का हिसाब
हमने तुम्हे बेपनाह मोहब्बत उधार दी
दिल का धढ़कना एक रिवायत है अगर
हमने तेरे बिना यह रिवायत भी इंकार की
1 comment - ज़िन्दगी जीने की चाहत
Saiyed - September 17, 2014 at 12:50 pm
Loved it!!