जा चूका हूँ
January 31, 2015 at 11:49 am,
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तुम ज़िन्दगी को जहाँ से देख रहे हो
मैं उससे गुजर बहुत दूर आ चूका चूका हूँ
तुम्हारी नींदे जिन ख्वाबों में डूबी हैं
मैं उन ख्वाबों को कब का सजा चूका हूँ
तुम जहाँ से मुझे आवाज़ दे रहे हो
मैं वहां से कब का दूर आ चूका हूँ
तुम तो कभी गए नहीं मेरी ज़िन्दगी से
मैं तो कबका तुम से भी दूर जा चूका हूँ
तुम सब सजाते रहे ज़िन्दगी को मगर
मैं तो इस मेले से मीलों दूर जा चूका हूँ
न छूना मेरी धड़कनो को तुम फिर से
मैं इन्ही धड़कनो से दुनिया हिला चूका हूँ