इन्तहां
May 17, 2014 at 4:14 pm,
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मैं सुन लेता हूँ तेरी खामोशियों को
मोहब्बत की कोई और ज़ुबान नहीं होती
तुम मुझे यूँ भुला नहीं सकते
चाहत की कोई और इन्तहां नहीं होती
खामोश चाहतें और मेरा दीवानापन
यह बस ऐसे ही रूहे फ़ना नहीं होती
यह हकीकत है की ज़िन्दगी में देर से मिले
उम्र कभी मोहब्बत के दरमियान नहीं होती