May 18, 2014 at 10:15 pm,
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मैं तो हूँ एक खुली किताब लेकिन
लोग पढ़ने में उम्रे गुजार देते हैं
भूल जाता हूँ आईने में खुद का चेहरा
लोग मेरे चेहरे को आइना बना देते हैं
मैं इतिहास में जाने का आदि नहीं
लोग मुझे तारीखें बना देते हैं
कोई फ़र्क़ नहीं तुमने मुझे कैसे देखा
लोग मुझे पलकों पे उठा लेते हैं