khayal
दरख्तों में जमीं बर्फ की ठंढक
बस महसूस करता रहूं आँखें मूँद कर
खो जाऊं इन वादिओं में तनहा
ाआहिस्ता आहिस्ता पिघलूँ बर्फ बन कर
परछाइओं से बन रही कई परछाइयां
दरख्तों को ढूंढ निकालूँ बर्फ से
झील में रेंगती बर्फ की आरज़ू
सुन रहां हूँ नीली आँखें बंद कर
Today
गीली ज़मीन और खुला आसमान ले चल रहा हूँ
मैं इस सफर में ख्वाबों का कारवां ले चल रहा हूँ
कभी हादसे कभी दास्ताँ ले चल रहा हूँ
तेरे ही रंग का आसमान ले चल रहा हूँ
किस्मत
मैंने देखा ज़िन्दगी को अपने अंदाज़ में
ज़िन्दगी चलती रही किस्मत के नाम पे
हमको था मिलना हमारे पिछले जन्म में
मैं वही ठहर गया हूँ तेरे ही इंतज़ार में
मुझे अब भी याद है उस जनम की बातें ...................
तुम थे उस दौर-ये-हुश्न का आफताब
मैं ढूंढ रहा था ज़िन्दगी के मायने
दर असल हम और तुम एक ही हैं
कभी किस्मत कभी ज़िन्दगी आगे
I was living my life on my own terms
Life was on in the shadow of destiny
We were destined to unite in past life
I have frozen myself in time
I still remember the past life........
You were the light of beauty of that time
I was still struggling to find the purpose
As per the will of God we are one always
Sometimes luck supersedes the life
सातवां आसमान
तू जा बैठा है उस सातवें आसमान पर
यहाँ इंसानियत तिनके तिनके जल रही
आग लगी है जहाँ में तेरे ही नाम पर
फितरत
उनकी नियत बदल गयी और मेरी किस्मत
उनके जाने से तो मुझे कोई सिकवा नहीं
मैं तो जारी रहा सफर में लिए अपनी फितरत
सज़दा
आईने को देखूं या खुद को
मेरा वज़ूद तेरी मेहरबानी से
सजदा करू या क़ुर्बान खुद को
चिराग
रौशनी में हकीकत नज़र आती है
वक़्त तो ठहरता ही नहीं किसी के लिए
किस्मत जाने क्यों वक़्त से शर्माती है
कौन ?
ज़रा उनकी मासूमियत तो देखिये
दिल-ओ-दिमाग पर कब्ज़ा किये हैं
और फिर अदा से ये भी पूछते हैं
किसके ख्यालों में गुम रहते हो ?
जा चूका हूँ
तुम ज़िन्दगी को जहाँ से देख रहे हो
मैं उससे गुजर बहुत दूर आ चूका चूका हूँ
तुम्हारी नींदे जिन ख्वाबों में डूबी हैं
मैं उन ख्वाबों को कब का सजा चूका हूँ
तुम जहाँ से मुझे आवाज़ दे रहे हो
मैं वहां से कब का दूर आ चूका हूँ
तुम तो कभी गए नहीं मेरी ज़िन्दगी से
मैं तो कबका तुम से भी दूर जा चूका हूँ
तुम सब सजाते रहे ज़िन्दगी को मगर
मैं तो इस मेले से मीलों दूर जा चूका हूँ
न छूना मेरी धड़कनो को तुम फिर से
मैं इन्ही धड़कनो से दुनिया हिला चूका हूँ
साहिल समंदर
साहिल अगर गुम जाये तो समंदर को दो आवाज़
मुश्किल हो गर चलना ज़मीन पर तो आसमानो पर करो परवाज़
अंजाम अगर ना दिखे तो आगाज़ को दो फिर आवाज़
उन आवारा लहरों के बीच भी न भूलो अपने अंदाज़
तन्हाई को गर न मिटा पाओ खुद से तो दो मुझे आवाज़
दिखूं या ना दिखूं तुम्हे पर मैं हमेशा हूँ तुम्हारे आस पास
वक़्त तो कभी ठहरता नहीं किसी के लिए ऐ दोस्त
तुम ही रूक जाओ किसी मोड़ पर जहाँ से फिर चलें साथ साथ
वक़्त हाशिये पर
सन्नाटे अचानक तेरे साथ गाने लगे
अंधेरों ने दे दी उजालों को सिकश्त
मै तो करता ही रह गया तेरी आरज़ू
तू सिमट गया हाशिये पर ऐ वक़्त
पहुंचेंगे तुम तक
ये रास्ते कहीं से भी गुजरें
पहुंचेंगे तुम तक
ये दुआएं जब भी निकले
पहुंचेंगे तुम तक
ये हकीकत जो भी बयां करे
पहुंचेंगे तुम तक
ये कदम भटक भी जाएँ अगर
पहुंचेंगे तुम तक
मौत के बाद जीने की कसमे
पहुंचेंगे तुम तक
मेरी मोहब्बत और मेरी रुस्वाई
पहुंचेंगे तुम तक
गमगीन
खून फैला था फ़िज़ाओं में
खून के क़तरे गमगीन थे
खून उन बच्चों का था
जिनके ख्वाब भी कमसिन थे
हवाओं में जो था फैला हुआ
क़तरे क़तरे खून और खून थे
जाओ इन वहशियों को बता दो
हर क़तरे से अब निकलेगा एक
पैगम्बर
एक अंतराल
मुझे अब जीतने की आदत हो गयी है
पर एक हार को मैं ताउम्र ढोता रहा
हँसता रहा दुनिया की नज़रों में मगर
जब भी खुद के साथ हुआ रोता रहा
मेरे गम मेरे ख्वाब मेरे अज़ीज़ हैं
इनको ओढ़कर कई रातें सोता रहा
मुझसे बिछड़े लोग मुझे याद करें न करें
मैं सबकी यादों को बटोरे चलता रहा
ज़िन्दगी जीने की चाहत
ज़िन्दगी जीने की चाहत में एक उम्र गुजार दी
खुद की साँसे तो काफी न थी औरों को उधार दी
करता रहा सबको खुश देखने की कोशिश
खुद के दामन में उलझने हज़ार थी
ज़िंदा हूँ अबतक तो यह मेरा हौसला है
अब तो दुश्मनो ने भी मेरी नज़र उतार दी
एक बारूद हूँ जिसे चिंगारी की जरुरत नहीं
कब फट जाऊं मैं इसका कोई एतबार नहीं
तुम जिस हद तक चाहो गुजर जाओ
हमने तेरे सजदे में यह उम्र गुजार दी
अब कौन करे नफे नुक्सान का हिसाब
हमने तुम्हे बेपनाह मोहब्बत उधार दी
दिल का धढ़कना एक रिवायत है अगर
हमने तेरे बिना यह रिवायत भी इंकार की
ज़िन्दगी
सच का अतीत
झूठ का भविष्य
ज़िन्दगी एक डायरी
झूठ की धुप
सच की छाओं
ज़िन्दगी एक झरोखा
सच का पत्थर
झूठ के फूल
ज़िन्दगी एक एहसास
सच का झूठ
झूठ का सच
ज़िन्दगी एक हस्ताक्षर
सच का सच
झूठ का झूठ
ज़िन्दगी एक फलसफा
तलाश
और खुद को ही गवां बैठे
चले थे हम जिनको मिटाने
पलकों पर उनको ही बिठा बैठे
हर पल मांगता मुझसे ये जवाब
कभी खुद बन जाता है ये सवाल
कभी बन जाता है ये जवाब
मैं तो हूँ एक खुली किताब लेकिन
लोग पढ़ने में उम्रे गुजार देते हैं
भूल जाता हूँ आईने में खुद का चेहरा
लोग मेरे चेहरे को आइना बना देते हैं
मैं इतिहास में जाने का आदि नहीं
लोग मुझे तारीखें बना देते हैं
कोई फ़र्क़ नहीं तुमने मुझे कैसे देखा
लोग मुझे पलकों पे उठा लेते हैं
इन्तहां
मैं सुन लेता हूँ तेरी खामोशियों को
मोहब्बत की कोई और ज़ुबान नहीं होती
तुम मुझे यूँ भुला नहीं सकते
चाहत की कोई और इन्तहां नहीं होती
खामोश चाहतें और मेरा दीवानापन
यह बस ऐसे ही रूहे फ़ना नहीं होती
यह हकीकत है की ज़िन्दगी में देर से मिले
उम्र कभी मोहब्बत के दरमियान नहीं होती